शायरी क्या होती है? (मशहूर शायरों की वास्तविकता से जुड़ी कुछ उम्दा शायरी पेश ) What is poetry? (Presenting some excellent poetry related to the reality of famous poets)
शायरी क्या होती है?
शायरी क्या होती है? (मशहूर शायरों की वास्तविकता से जुड़ी कुछ उम्दा शायरी पेश ) What is poetry? (Presenting some excellent poetry related to the reality of famous poets)
कोई बात कहने की वो विधा ,
जिसे सुन कर लोग कहें वाह वाह!
या मुक़र्रर कहें बार बार !
बस वही है शायरी यार ! ☺
क्या है बेस्ट 2 लाइन शायरी?
मशहूर शायरों की वास्तविकता से जुड़ी कुछ उम्दा शायरी पेश कर रहा हूँ उम्मीद करता हूँ पसंद आएगी…
मजहबी दूरियों पर
गिरजा में, मंदिरों में, अज़ानों में बट गया,
होते ही सुब्ह आदमी ख़ानों में बट गया । (निदा फ़ाज़ली)
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बस्ती में अपनी हिन्दू मुसलमाँ जो बस गए,
इंसाँ की शक्ल देखने को हम तरस गए । (कैफ़ी आज़मी)
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भूख से बड़ा मजहब और रोटी से बड़ा ईश्वर हो तो बता देना . . . . . मुझे भी धर्म बदलना है ।
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कोई हिन्दू कोई मुस्लिम कोई ईसाई है,
सब ने इंसान न बनने की क़सम खाई है । (निदा फ़ाज़ली)
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दुनियादारी पर
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हम क्या कहें अहबाब क्या कार-ए-नुमायाँ कर गए,
बी.ए. हुए, नौकर हुए, पेंशन मिली, फिर मर गए । (अकबर इलाहाबादी)
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मिलने को तो हर शख्स एहतराम से मिला,
पर जो मिला किसी न किसी काम से मिला ।
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चंद सिक्कों में बिकता है यहाँ इंसान का ज़मीर,
कौन कहता है मेरे मुल्क में महंगाई बहुत है।
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दो शब्द तसल्ली के नहीं मिलते इस शहर में,
लोग दिल में भी दिमाग लिए फिरते हैं ।
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दोस्ती-दुश्मनी, दग़ाबाज़ी पर
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दुश्मनों से प्यार होता जाएगा,
दोस्तों को आज़माते जाइए । (ख़ुमार बाराबंकवी)
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शायरी करने के लिए कुछ नहीं खास चाहिए,
बस एक यार चाहिए और वो भी दगाबाज़ चाहिए ।
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दोस्ती जब किसी से की जाए,
दुश्मनों की भी राय ली जाए । (राहत इंदौरी)
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इंसान की फितरत पर
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हर आदमी में होते हैं दस बीस आदमी,
जिस को भी देखना हो कई बार देखना । (निदा फ़ाज़ली)
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हर कोई रखता है ख़बर ग़ैरों के गुनाहों की,
अजब फितरत हैं कोई आइना नहीं रखता ।
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पहले ज़मीं बँटी फिर घर भी बँट गया,
इंसान अपने आप में कितना सिमट गया ।
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आइना कोई ऐसा बना दे, ऐ खुदा जो,
इंसान का चेहरा नहीं किरदार दिखा दे ।
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खुदा न बदल सका आदमी को आज भी यारों,
और आदमी ने सैकड़ो खुदा बदल डाले ।
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इल्म-ओ-अदब के सारे खजाने गुजर गए, क्या खूब थे वो लोग पुराने गुजर गए ।
बाकी है बस जमीं पे आदमी की भीड़, इंसान को मरे हुए तो ज़माने गुजर गए ।।
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तन्हाई पर
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मुझे तन्हाई की आदत है मेरी बात छोड़ें,
ये लीजे आप का घर आ गया है हात छोड़ें । (जावेद सबा)
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एक महफ़िल में कई महफ़िलें होती हैं शरीक,
जिस को भी पास से देखोगे अकेला होगा । (निदा फ़ाज़ली)
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माँ की दुआ न बाप की शफ़क़त का साया है,
आज अपने साथ अपना जनम दिन मनाया है । (अंजुम सलीमी)
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देशभक्ति पर
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बस ये बात हवाओं को बताये रखना, रौशनी होगी चिरागों को जलाये रखना ।
ये लहू देकर जिसकी हिफाज़त की शहीदों ने, उस तिरंगे को सदा दिल में बसाये रखना ।।
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मैं मुस्लिम हूँ, तू हिन्दू है, हैं दोनों इंसान, ला मैं तेरी गीता पढ़ लूँ, तू पढ ले कुरान ।
अपने तो दिल में है दोस्त बस एक ही अरमान, एक थाली में खाना खाये सारा हिन्दुस्तान ।।
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न पूछ ज़माने को क्या हमारी कहानी है,
हमारी पहचान तो सिर्फ ये है कि हम सिर्फ हिंदुस्तानी है ।
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रिश्तों पर
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बहुत अजीब से हो गए हैं ये रिश्ते आजकल,
सब फुरसत में हैं पर वक़्त किसी के पास नहीं ।
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मुलाकातें बहुत जरूरी हैं अगर रिश्ते निभाने हैं,
लगाकर भूल जाने से तो पौधे भी सूख जाते हैं ।
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बड़े अनमोल हे ये खून के रिश्ते इनको तू बेकार न कर,
मेरा हिस्सा भी तू ले ले मेरे भाई घर के आँगन में दीवार ना कर ।
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वक़्त पर
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कुछ इस तरह से सौदा किया मुझसे मेरे वक़्त ने,
तजुर्बे देकर वो मुझ से मेरी नादानियां ले गया ।
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ऐ वक़्त मेरे सब्र का इतना इम्तेहान न ले
याद रख मैंने जो ठोकर मारी तुझे, तो तू कभी लौट के न आ पायेगा ।
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वक्त की यारी तो हर कोई कर लेता है,
मजा तो तब है जब वक़्त बदले और यार न बदले ।
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माता
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रोटी वो आधी खाती है बच्चे को पूरी देती है,
मेरी हो या तुम्हारी दोस्तों, माँ सबकी माँ ही होती है ।
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सख्त रास्तो पर भी आसान ये सफर लगता है,
ये मुझे मेरी माँ की दुवावो का असर लगता है।
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अभी ज़िन्दा है माँ मेरी मुझे कु्छ भी नहीं होगा
मैं जब घर से निकलता हूँ दुआ भी साथ चलती है । (मुनव्वर राना)
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मेरी ख़्वाहिश है कि मैं फिर से फ़रिश्ता हो जाऊँ,
माँ से इस तरह लिपट जाऊँ कि बच्चा हो जाऊँ।
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किसी को घर मिला हिस्से में या कोई दुकाँ आई,
मैं घर में सब से छोटा था मेरे हिस्से में माँ आई । (मुनव्वर राना)
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किसी भी मुश्किल का अब किसी को हल नहीं मिलता,
शायद अब घर से कोई माँ के पैर छूकर नहीं निकलता ।
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माँ से बढ़कर कोई नाम क्या होगा, इस नाम का हमसे एहतराम क्या होगा,
जिसके पैरों के नीचे जन्नत है, उसके सर का मक़ाम क्या होगा ।
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पूछता है जब कोई मुझसे कि दुनिया में अब मोहब्बत बची है कहाँ,
मुस्कुरा देता हूँ मैं और याद आ जाती है माँ ।
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पिता
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चट्टानों सी हिम्मत और ज़ज़्बातो का तूफान लिए चलता है,
पूरा करने की ज़िद से पिता दिल में बच्चो के अरमान लिए चलता है ।
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कमर झुक जाती है बुढ़ापे में उसकी सारी जवानी जिम्मेदारियों का बोझ ढोकर,
खुशियों की ईमारत खड़ी कर देता है पिता अपने लिए बने हुए सपनो को खोकर ।
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सख्त सी आवाज़ में कहीं प्यार छुपा रहता है,
उसकी रगो में हिम्मत का एक दरिया सा बहता है।
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कितनी भी परेशानिया और मुसीबत हो उस पर,
हंसकर झेल जाता है किसी से कुछ न कहता है।
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परिवार को जो हर हाल में संभालता है, हर परिस्थिति में हर बात का हल निकालता है,
न कोई इच्छा न कोई जरूरत रहती अधूरी, वो इस कदर प्यार से पालता है ।
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कुछ प्रेरणादायक
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दिल ना-उमीद तो नहीं नाकाम ही तो है,
लम्बी है ग़म की शाम मगर शाम ही तो है । (फ़ैज़ अहमद फ़ैज़)
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चला जाता हूँ हँसता खेलता मौज-ए-हवादिस से,
अगर आसानियाँ हों ज़िंदगी दुश्वार हो जाए । (असग़र गोंडवी)
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जब टूटने लगे होसले तो बस ये याद रखना, बिना मेहनत के हासिल तख्तो ताज नहीं होते,
ढूंढ लेना अंधेरों में मंजिल अपनी, जुगनू कभी रौशनी के मोहताज नहीं होते ।
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लहरों की रवानी देख कर यह न समझना, कि समंदर में रवानी नहीं है,
जब भी उठेंगे तूफान बन के उठेंगे, अभी हमने उठने की ठानी नहीं है ।
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अंत में दो शब्द बेटियों के लिए :-
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चिड़िया को देख वो बोली पापा मुझे भी पँख चाहिए,
पापा मन ही मन बोले पँख ना होते हुए भी उड़ जाना तुझे एक दिन !
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इन शायरी को पढ़कर यदि पाठकों को कुछ भी प्रेरणा मिलती है तो मेरा जवाब देना सार्थक सिद्ध होगा । यदि आपको इस उत्तर को पढ़ने के बाद कुछ प्रेरणा मिलती है तो उत्तर को अपवोट और साझा करें
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