दिलचस्प शायरी और हंसी-खुशी का सफर
रेल और हवाई जहाज़ के मतभेद
एक बात बताओ "रेल" में
लोग चुप नहीं होते...!
और हवाई जहाज़ में बोलते
नहीं...!
मैटर क्या हैं...? 😝😝😝😝
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ट्रेन की सीटों का खेल
जब आदमी ट्रैन में 'रिजर्वेशन' सीट में सफर करता है तो,
अपनी सीट पर नहीं "टिकता"...
और...
जनरल डिब्बे में सफर तय करता है तो अपनी सीट नहीं "छोड़ता"।
मैटर क्या है?? 😆😆😆
उम्मीद की सीट
एक ट्रेन में दो लड़के बैठे थे और बीच में एक सीट खाली थी!
मैंने पूछा, यहाँ कौन बैठा है।
वो बोले...
"हमारी उम्मीद"! 😜😜😘😋🤪😇🙃😉😎
बर्फ का शरीफ टुकड़ा
"बर्फ का वो शरीफ टुकड़ा जाम में क्या गिरा... बदनाम हो गया..."
"देता जब तक अपनी सफाई... वो खुद शराब हो गया....."
ताल्लुकात और आदतें
ताल्लुकात बढ़ाने हैं तो....
कुछ आदतें बुरी भी सीख ले गालिब,
ऐब न हों तो.....
लोग महफ़िलों में नहीं बुलाते।
रात का किस्सा
एक बार रात के वक्त रास्ते से अकेले ही गुज़र रहा था
अचानक
गुण्डे से दिखने वाले दो लड़कों ने रास्ता रोका
चाकू दिखा के बोले - इतनी रात में वो भी अकेले, डर नहीं लगता
मैं सिर्फ़ इतना ही बोला
"भैया, जब ज़िन्दा था, तो बहुत डरता था"
माँ कसम दोनो दिखे नही वापस ... 😂😂😂
लेखनी की सराहना
तुम्हारी लेखनी को सराहने वाली ..
वाह-वाह करने वाली तो यहाँ बहुत हैं ..
कोई मेरी तरह तुम्हारी हर नज़्म हर ग़ज़ल
को डायरी में लिखकर संजोने वाली मिले
तो बताना.. :)
प्रेम की अनोखी विशेषताएँ
वो तेरा ख्य़ाल थोडा़ सा
वो तेरा ऐह़सास थोडा़ सा,
वो तेरा प्यार थोडा़ सा
वो तेरी ख़ामोश़ी थोडी़ सी,
तू आऐ तो मोहब्ब़त बेईंतेहा
ना आऐ तो मदहोश़ी थोडी़ सी...!!
दिलचस्प शायरी
कुछ मीठे से
कुछ नमकीन से
हो तुम
कुछ राग से
कुछ रंगीन से
हो तुम
कुछ भोले से
कुछ बदमाश से
हो तुम
कुछ अपने से
हर रूप में #दिलचस्प
से हो तुम
प्रेम का कल्पवृक्ष
घर में रहे,
फ़ुरसत में रहे
तो
एहसास हुआ
कि
प्रेम तो कल्पवृक्ष
बन चुका था
और
हम
नादान
समझ रहे थे
कि
इसकी
जड़ें हिलने लगी 😊😊😊🙏🏻🙏🏻
शायरी और प्यार का खूबसूरत पल
काश मेरी जिन्दगी में भी वो खूबसूरत पल आ जाए...
कि मेरी शायरी पढ़ते पढ़ते किसी को मुझसे प्यार हो जाए...
प्रेम, जीवन और महिलाएं: एक शायरी संग्रह
पत्थरों की डगर और आंसुओं की नहर
चलते-चलते पत्थरों पे डगर बन जाती है
बहते-बहते आंसुओं की नहर बन जाती है,
बगैर दर्द या ख़ुशी के कब निकलते हैं आंसू
आता सागर में तूफ़ान तो लहर बन जाती है,
खंज़र और गोली से बच जाता इंसान यहाँ
हंसी लबों से निकली बात ज़हर बन जाती है,
बढ़ती हुई आबादी का ही है अंजाम यह की
रातभर में छोटी बस्ती भी नगर बन जाती है,
शम्मां की चाहत में जलता है मासूम पतंगा
जरा सी भूल ता-उम्र की अगर बन जाती है,
मर गए हज़ारों लोग जान ना सका कोई
आ गई उनको खांसी भी तो खबर बन जाती है,
जरा सी गलतफहमी तोड़ देती है रिश्तों को
खत्म ना हो झाड़ी तो वो पेड़ बन जाती है,
दिखाई देता है सारा ज़माना ही बेवफा
धोखा खा खाकर के ऐसी नज़र बन जाती है...
चालीस पार की महिलाएं
चालीस पार की महिलाएं
बड़ी सजीली होती है
आ जाता है उन्हें
सास से निपटना
पति के नैनो का भटकना
बच्चो के साथ एडजेस्ट करना
अपना शौक खोज लेती है
कोई कुकिंग करती है
तो कोई पुरानी डायरी पलटती है
कोई गुनगुना लेती है पुराने तराने
नहीं देती किसी को अब ताने
कोई अपनी खूबसूरती निखारती है
कोई डांस में हाथ आजमाती है
कोई बागवानी अपनाती है
खुद को खुद से मिलाती है
हर चीज आजमाती है
अब पति पर शक नहीं करती
बच्चो से नहीं उलझती
बार बार घर नहीं बदलती
हर बात पर नहीं गरजती
सब समझ जाती है
आहिस्ता सब सुलझाती है
ये महिलाएं बडी संगीन होती है
ऊपर से शांत अंदर से रंगीन होती है
सब निपटा कर
जी लेती है खुद के लिए
कभी पकोड़े तल लेती है
अपने भी लिए
रिश्तों की गहराई जान लेती है
हर बात बिना बहस मान लेती है
ये बडी लचीली होती है
सच चालीस पार की महिलाएं
बड़ी सजीली होती है।।
आदर और माफी
नम्रता से बात करना,
हर एक का आदर करना,
शुक्रिया अदा करना और
यदि आवश्यक हो तो,
माफी भी माँग लेना,
ये गुण जिसके पास हैं,
वो सदा सबके करीब
औऱ सबके लिये खास है।"
प्रेम की विशेषताएँ
लत.....
तुम्हारी लगी है.....
इल्जाम.................
मोबाइल पर आता है.....
तेरी..............................
मोहब्बत ने लिखा................
मेरे......................................
दिल में कहानी...........................
जैसे...........................................
सावन भादों में...................................
रिमझिम बरसता पानी..............................
तुम...............................................
बाढ़ की तरह............................
इश्क़ तो करो...........................
हम............................
बिहार....................
की तरह............
डूब ना जाए....
तो............
कहना....
प्रेम की पवित्रता
प्रेम फूल की तरह मत बनाओ
जो दूसरे दिन मुरझा जाए
प्रेम को तुलसी की तरह
पवित्र बनाओ जो
हर दिन महकता रहे
और सुंदर होता जाए
🌹🙏राधे राधे 🙏🌹
प्रेम का आभास
प्रेम केवल उस आदमी में होता है जिसको आनंद उपलब्ध हुआ हो।
जो दुखी हो, वह प्रेम देता नहीं, प्रेम मांगता है, ताकि दुख उसका मिट जाए।
आखिर प्रेम की मांग क्या है? सारे दुखी लोग प्रेम चाहते हैं। वे प्रेम इसलिए चाहते हैं कि वह प्रेम मिल जाएगा तो उनका दुख मिट जाएगा, दुख भूल जाएगा।
प्रेम की आकांक्षा भीतर दुख के होने का सबूत है। तो फिर प्रेम वह दे सकेगा जिसके भीतर दुख नहीं है।
जिसके भीतर कोई दुख नहीं है, जिसके भीतर केवल आनंद रह गया है, वह आपको प्रेम दे सकेगा। 🌷
पत्नियाँ और प्रेम
बहुत खूबसुरत
होती होंगी
वो पत्नियाँ भी
जो पति की
प्रेम में लिखी
कविता को
अनसुनी कर
अंत में
हौले से मुस्कुराकर कह देती होंगी
"तुम और तुम्हारी कविताएँ,
जाने दो, मुझे और भी बहुत से काम हैं!"
स्त्री की भूमिका
☞हे "आकाश" के समान थामने वाली स्त्री,
इस घर को ऐसे ही "थामे" रखना।
हे "धरती" के समान धैर्यवान स्त्री,
इस घर को ऐसे ही "संजोए" रखना।
हे "विद्युत" के समान चपला स्त्री,
इस घर को ऐसे ही "रौशन" रखना।
हे "जल" के समान निर्मल स्त्री,
इस घर को ऐसे ही "पवित्र" रखना।
हे "वायु" के समान शीतल स्त्री,
इस घर को ऐसे ही "शांत" रखना।
हे "प्रकृति" के समान सृजना स्त्री,
इस घर का सुंदर "सृजन" करना !
चाहत की पहचान
चाहत क्या होती है...!!
चाहत तो सिर्फ चाहत होती है...!!
जिसकी कमी आप हर पल महसूस करें, चाहत वो होती है...!!
ये किसी उम्र की मोहताज़ नहीं होती, जब जिससे होना होता है, हो जाती है...!!
कभी-कभी ज़िंदगी में आगे बढ़ते हुए,
इक अनजाने अजनबी से कोई रिश्ता जूड़ जाता है,
और वो एक सच्ची दोस्ती में बदल जाता है,
चाहत वो होती है....!!!
किसी को पाना ही नहीं, किसी के साथ समय बिताने, बातें करने से जो सुकून मिलता है,
चाहत वो होती है....!!!
जिसके साथ आप अपना हर सुख-दुख बाँटना चाहते हो,
चाहत वो होती है....!!!
ये वो जज़्बा और एहसास है
जिसका कोई नाम नहीं होता,
जो बेहद पाक और खूबसूरत होता है,
चाहत वो होती है .....!!!
शादीशुदा स्त्री का रिश्ता
उसे जाने अनजाने में अपना दोस्त बनाती है...
तो वो जानती है कि
न तो वो उसकी हो सकती है....
और न ही वो उसका हो सकता है....
वो उसे पा भी नहीं सकती और खोना भी नहीं चाहती..
फिर भी वह इस रिश्ते को अपनी मन की चुनी डोर से बांध लेती है....
तो क्या वो इस समाज के नियमों को नहीं मानती?
क्या वो अपनी सीमा की दहलीज को नहीं जानती?
जी नहीं....!!
वो समाज के नियमों को भी मानती है....
और अपने सीमा की दहलीज को भी जानती है...
मगर कुछ पल के लिए वो अपनी जिम्मेदारी भूल जाना चाहती है...!!
कुछ खट्टा... कुछ मीठा....
आपस में बांटना चाहती है..
जो शायद कहीं और किसी के पास नहीं बांटा जा सकता है...
वो उस शख्स से कुछ एहसास बांटना चाहती है...
जो उसके मन के भीतर ही रह गए हैं कई सालों से...
थोड़ा हँसना चाहती है...
खिलखिलाना चाहती हैं...
वो चाहती है कि कोई उसे भी समझे बिन कहे...
सारा दिन सबकी फिक्र करने वाली स्त्री चाहती है कि कोई उसकी भी फिक्र करे...
वो बस अपने मन की बात कहना चाहती है...
जो रिश्तों और जिम्मेदारी की डोर से आजाद हो...
कुछ पल बिताना चाहती है...
जिसमें न दूध उबालने की फिक्र हो, न राशन का जिक्र हो... न EMI की कोई तारीख हो....
आज क्या बनाना है,
ना इसकी कोई तैयारी हो....
बस कुछ ऐसे ही मन की दो बातें करना चाहती है....
कभी उल्टी-सीधी, बिना सिर-पैर की बातें...
तो कभी छोटी सी हंसी और कुछ पल की खुशी...
बस इतना ही तो चाहती है....
आज शायद हर कोई इस रिश्ते से मुक्त एक दोस्त ढूंढता है....
जो जिम्मेदारी से मुक्त हो...!
तुम्हारे बिना
मुझे तुम्हारे अलावा कभी किसी और से-
कोई दरकार नहीं हुई
मुझे तुम्हारे सामिप्य और कृपा के अलावा
कभी कोई चाहत नहीं हुई
जब भी कुछ चाहा, तुमसे मन की बात
आँखों के इशारे से, पूरी हुई
हर जरुरत, शिशु मानिंद ममत्व से
तुमने पूरी की
रात की चाँदनी में भी तुमने
मुझे स्वप्निल सुकून दिया
चाहे अमृत की बातें हों या
फूलों की माला की तरह सजावट
हर लम्हा तुमने प्यार से सींचा
मुझे तुम्हारे बिना जीवन का कोई
ख्याल नहीं आया
मुझे तुम्हारे अलावा किसी और से
कोई दरकार नहीं हुई
तुम्हारे बिना बस किसी ख्वाब की तरह
सपना ही होता हूँ मैं
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