इश्क़ की सरगोशियाँ: प्रेम, प्रीत, और तन्हाई के अनकहे शब्द
मैं भी हूं तन्हा, तुम भी हो तन्हा
मैं भी हूं तन्हा, तुम भी हो तन्हा।
चले उस जगह, जहां दोनों हो तन्हा।।
सूरज भी है तन्हा, चांद भी है तन्हा।
करते हैं सफ़र आसमां में वे तन्हा।।
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मोहब्बत का अंदाज और इंतजार का सबक
उनकी फितरत में मोहब्बत का अंदाज कुछ अलग है,
रोज एक जख्म देकर कहते हैं, "अपना ख्याल रखना।"
इजहार से नहीं, इंतजार से पता चलता है मोहब्बत कितनी गहरी है,
मेरी सांसे आज भी तेरे इंतजार में ठहरी हैं।
तुम्हारी आराधना
मेरी कविताओं में,
मेरे सपनों में,
मेरी छोटी-छोटी ख्वाहिशों में,
ठहर कर देखो, ये बस तुम्हें ही चाहते हैं।
फिक्र छोड़ो, सखी
छोड़ो ना सखी,
ये सफेद बालों की और बढ़ते वजन की फिक्र।
क्योंकि कोई तो होगा,
जो सिर्फ तुम्हारे खूबसूरत दिल और प्यारी मुस्कान पर मरता होगा।
फिर से आना
कभी फिर से आ जाना,
बस वैसे ही जैसे परिंदे आते हैं आंगन में।
जब आओ, तो दिल के दरवाजे पर घंटी मत बजाना,
हाँ, अगर हो सके तो अपना थोड़ा समय साथ में ले आना।
इश्क़ की सरगोशियाँ
चाहता हूँ कि मैं भी सुनूं इश्क़ की सरगोशियां आहिस्ता-आहिस्ता,
तुम्हारे घनेरे मेघों में विलीन हो जाऊं,
जो बरसने को आतुर हैं मेरे चेहरे पर।
बात मन के भावों की
बात मन के भावों को लिखने की थी...
प्रेम लिखा, प्रीत लिखा, मोहब्बत लिखा,
फिर लगा दो अक्षर ही काफी हैं,
फिर सब मिटाकर सिर्फ तुम लिख दिया।
अंतिम विचार
प्रेम की इस अभिव्यक्ति ने दिल की गहराइयों को छू लिया है। प्रेम के इस सफर में, ये शब्द एक ऐसा झूला बनाते हैं, जो अतीत और भविष्य के बीच हिलता रहता है।
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