चाय पे एक मुलाक़ात: प्रेम की कविताएँ
चाय पे एक मुलाक़ात रखेंगे...
दोनों अपनी अपनी बात रखेंगे...!!☕☕
तुम सारी शिकायतें रखना...
हम भी अपने जज़्बात रखेंगे...🖤🖤
जुगनू, चांद, सितारों से कहेना...
आज बादल हल्की सी बरसात रखेंगे....🥀🥀
झुमके और काली बिंदी लगा कर आना मेरा...
तुम्हारी तारीफ़ की इन्हीं से शुरुआत रखेंगे....🙈🙈
मुलाक़ात का सफर
तुम चलो, कुछ दूर, साथ मेरे...
इस पूरी दुनिया के सामने,
न दोस्त, न हमसफर, न प्रेमी बनकर...
पर चलने से पहले एक बार,
खुद से पूछ लेना ज़रूर...
क्या चल सकोगे ?
तुम कुछ दूर, मेरे कुछ नहीं बनकर...
क्योंकि आसां है, इस भागती दुनिया में...
दोस्त, हमसफर, या प्रेमी बन जाना...
पर बहुत मुश्किल है, किसी के साथ चलना,
बिना उसका कुछ भी बने!!
बन सको तो मेरी रूह मेरे अल्फ़ाज़ बन जाना,
मेरी शायरी, मेरी ग़ज़ल में सिर्फ तुम ही तुम नज़र आना...⚘⚘||
प्रेम का सफर
तरसता है दिल
👉🏽तेरी💞आवाज़ के लिए,
तेरे मोहब्बत भरे
दो अलफ़ाज़ के लिए,
करदो हमें फनाह
अपनी इस अदा के लिए,
तड़पते है हम तेरी
एक मुलाक़ात के लिए.
एक आरज़ू सी दिल में
अक्सर छुपाये फिरता हूँ …
प्यार करता हूँ तुझ से,
पर कहने से डरता हूँ …
नाराज़ ना हो जाओ
कहीं मेरी गुस्ताखी से तुम ….
इसलिए खामोश रह
कर भी,
तेरी धड़कन को सुना करता हूँ
प्रेम का स्वरूप
प्रेम यदि हो....
तो जैसे हुआ,
वैसा ही जीवन-भर सतत रहे ....
उसमे कोई बदलाव नही
क्योंकि प्रेम तो सम्पूर्णता है ....
पूर्ण है खुद में ....
बस होने भर की देर है ....
लगन लगने भर की ही देर है ....
यदि लगन लग गयी तो लौ एक सी अनवरत जीवन-भर जलती रहे ....
प्रेम मोक्ष की याचना नही करता ....
मोक्ष तो प्रेम का एक अवयव है....
जिसे हो जाए ...
स्वतः दिखाई देता है.....!!
खुशबू प्रेम की
स्पर्श प्रेम का
खुशबू खुशबू
घुलती मुझमें
सांस सांस तुम
नेह लुटाती
हक़ जताती
संवरती मुझमें
डूब जाती
दूर तुम ये पास आती
रंग में तुम्हारे
मुझे रंग जाती
सच बड़ी हसीन हैं ये
यादें तुम्हारी ❤️
स्त्रियों और प्रेम की भावना
स्त्रियाँ .......
पुरूष के पौरुष से नहीं
उस व्यक्ति से करती है प्रेम,
जो परमेश्वर नहीं होता
बल्कि होता है प्रेमी...
बस एक प्रेमी...
जो पढ़ना जानता हो उसका मौन,
जिसकी दृष्टि में हर वक्त....
वो देखे, ढलती आयु में भी
अपना सौंदर्य और यौवन...... 💕💕
ख्वाबों की मुलाक़ात
❤️❤️❤️
कल फिर तुम आए ख्वाब में
एक जमाने के बाद!
आंख फिर भर आई,
तेरे ख्वाब में आने के बाद!!
हम जिंदा तो है, मगर
जिंदा है कुछ इस तरह!
फूल कोई भटके जैसे
सड़क पे मुरझाने के बाद!!
तुम एक किरण की तरह आए,
बस चमक के रह गए!
जैसे चिराग एक बुझ जाए,
चिराग जलाने के बाद!!
तुम बिन चल रही है नफस
कुछ इस तरह समझो की!
कोई जी उठे,
बार बार मर जाने के बाद!!
जमाना ये हमको कुछ
इस तरह से मार डालेगा!
जैसे कोई तीर,
एक तीर चलाने के बाद!!
❤️❤️❤️
पुरुष और स्त्री की प्रेम दृष्टि
पुरुष प्रेम में यौवन ढूँढता है
स्त्री प्रेम में बचपन
पुरुष प्रेम में स्वच्छंदता चाहता है
स्त्री प्रेम में बंधन
पुरुष प्रेम को अधिकार मानता है
स्त्री प्रेम को कर्तव्य
पुरुष प्रेम को ओढ़ता है
स्त्री प्रेम को जीती है
पुरुष प्रेम में यथार्थवादी रहता है
स्त्री प्रेम में स्वप्नशील
पुरुष प्रेम को नमक कहता है
स्त्री प्रेम को शक्कर
दोनों एक दूसरे से अलग हैं
पर कमतर नहीं, पूरक हैं एक दूसरे के🌷
❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤
पुरुष की ख्वाहिश
🎻💫🖤हाँ पुरुष हूँ न..
कह नहीं पाता कई बार
अपने मन की
उद्विग्नता को..
नहीं संभाल पाता
कई बार,,
मन के अंदर चल रहे
तूफान को..
हाँ उस वक़्त बस एक
साथ की ख्वाहिश मेरी..
उस स्त्री की..
जो समझ सके
तन ही नहीं..
मन के भावो को भी..
भूल जाना चाहता हूँ
समक्ष उसके...
कि हाँ पुरुष हूँ मैं.
और उस पुरुष होने के
दम्भ को भी..
रो सकूँ समक्ष उसके..
और कहूं..
हाँ हूँ पुरुष..
पर दर्द होता मुझे भी,
बिलकुल तुम सा ही..
जो समझ मेरे दर्द को,,
दुलार दें, माँ की तरह..
और मेरे बालों पर
अपने हाथों,
और गालों पर.
अपने स्नेह का,
चुम्बन अंकित करें..
हाँ पुरुष हूँ..
पर फिर भी एक कंधा
ढूंढता हूँ मैं भी
सुकूँ के लिये
हमेशा संग तुम्हारे💫♥️🕊️
प्रयास
तुमको प्रिय हैं राग सभी,
मुझको मन का मौन प्रिये!
कैसे निभ सकती है बोलो,
मैं चुप तुम हो मुखर प्रिये!
वाणी लगती वाण कभी,
ब्यंग्य भरे उद्गार तुम्हारे!
स्वाभिमान का आदी मन,
परे समझ के साथ प्रिये!
प्यार तुम्हारा नव्य नवल,
मेरी कथा व्यथा प्रिये!
संग संग कैसे रह सकती,
नई पुरानी सोच प्रिये!
मैंने क्या समझा तुमको,
तुम मुझको समझ सकी,
प्रश्न एक है हम दोनों का,
उत्तर अपने अलग प्रिये !!
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